About Jalore

जालोर जिला प्रचीन काल में महर्षि जाबालि की तपोभूमि के कारण जाबलिपुर के नाम से विख्‍यात था, जो अरावली के पहाड़ स्‍वर्णगिरी या कंचनगिरी के नाम से पुराणों में विख्‍यात रमणीय पर्वत की तलहटी में बसा है। मध्‍यकाल में यह जालंधर के नाम सें भी प्रसिद्ध हुआ, यह नाम नाथ सम्‍प्रदाय के ऋषि जालंधरनाथ जी की तपों-स्‍थली के कारण भी रहा, लोक जन मानस की किवदन्तियों के अनुसार इस शब्‍द की उत्‍पति जाल तथा लोर दो शब्‍दों बतायी गयी है - जाल एक वृक्ष्‍ा का नाम है जों इस भू-भाग में बहुतायता से पाया जाता है तथा लोर सीमा को कहते है इन दोनो शब्‍दों के सम्मिलित रूप सें जालोर नाम की व्‍युत्‍पति होना भी माना जाता है।

पुराणों के अनुसार महाराजा मनु कें नौ पुत्रों मे सें चौथें पुत्र आनर्त ने सर्वप्रथम इस क्षेत्र में अपना शासन स्‍थापित किया मौर्यकाल में जालोर जिला मौर्य सामाज्‍य कें पश्चिम का हिस्‍सा था चंद्रगुप्‍त कें अधीन पुष्‍यगुप्‍त तथा अशोक कें अधीन तशास्‍कन यहॉ केशासक थे। कालान्‍तर में गुर्जरों ने इस क्षेत्र में सत्‍ता स्‍थापित की बाद में प्रतिहार शासक नागभट्ट ने चावड़ों से सत्‍ता छीनकर जालोरकों अपनी राजधानी बनाई।

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार यहां दक्षिण सागर का द्रुमकूल्‍य नामक उत्‍तरी भाग लहराता था भगवान राम कें आग्‍नेयबाण सें भयभीत होकर समुंद्र नें जब सेतु वधवाना स्‍वीकार कर लिया तो उन्‍होनें वह अमोध बाण इधर फैक दिया, जिससें यहॉ समुंद्रके स्‍थान पर मरू कान्‍ता रेगिस्‍तान बन गया, द्धापर युग में इस भूमि को मरूधन्‍त पुकारा जानें लगा, जो कालान्‍तर में मरूधर वमारवाड़ आदि नामों से परिवर्तित हुआ।

उघोतन सुरि रचित प्राचीन ग्रन्‍थ कुवलयमाला से स्‍पष्‍ट है कि ईसा की आठवी सदी में यह समुंद्र नगर था उस समय प्रतिहार नरेश वत्‍सराज का शासन था, 12वीं सदी के अन्‍त तक परमारों ने यहॉ शासन किया इतिहासकारों की मान्‍यता है कि जालोर का दुर्ग परमार राजाओं का बनाया हुआ है, जालोर के ऐतिहासिक दुर्ग में उत्‍कीर्ण सत्र 1238 कें शिलालेख सें ज्ञात होता है कि परमार राजा बीसल की रानी मेलरदेवी द्वारा सिन्‍धु राजेश्‍वर पर र्स्‍वण कलश चढाया गया, परमार शासकों से इस भू-भाग कों छीनकर सोनगरा चौहनों ने इसें अपनी राजधानी बनायी, कालान्‍तर में प्रतिहार, पर‍मार, चौलुक्‍य, चौहान, खिलजी, पठान, मुगल तथा राठौड़ राजवंशों ने भी शासन किया।

इस क्षेत्र में कई प्रमुख ऋषि मुनियों ने तप किया था महर्षि भारव्‍दाज का आश्रम व वसिष्‍ठ मुनि ने अपनी पत्नि अरूंधती एवं सप्‍त ऋषियों के साथ यहॉ पधारें महर्षि नारद नें अपनी वीणा कें तार बजाऐ तो बकासुर का वध करनें हेतु इस धरती पर चामुण्‍डा कों अपनी सात शक्तियों के साथ अवतरित होना पड़ा था, महात्‍मा बुद्ध कें काल में जालोर अवन्ति राज्‍य का एक हिस्‍सा था तथा चण्‍ड़ प्रघोत यहॉ का शासक था जिसकी राजधानी उज्‍जैन थी, 1164 ई.स. पश्‍चात् यहॉ पर कुमारपाल का शासन रहा, नाड़ोल शासक आलहण के सबसें छोटें पुत्र कीर्तिपाल सें जालोर पर चौहानों की परम्‍परा चली बाद में समरसिंह व उदयसिंह राजा बनें जिसनें मुगलों सें नाड़ोल व मण्‍डोर छीन लिया, तत्‍पश्‍चात् चाचिगदेव और सामन्‍तसिंह शासक बनें, जिसकें पुत्र वीर कान्‍हड़देव की शौर्य गाथा पर महाकवि पदमनाथ नें कान्‍हड़देव प्रबन्‍ध नामक महाकाव्‍य की रचना की लोक मानस में ऐसा माना जाता है कि कान्‍हड़देव श्री कृष्‍ण के अवतार थे।

कान्‍हड़देव प्रबन्‍ध खण्‍ड - 4 दोहा 229-235 कें अनुसार दादा सोनगरा वीरमदेव पुत्र कान्‍हड़देव का कटा हुआ सिर लेकर दिल्‍ली गये जहॉ शहजादी सिताई (फिरोजा) कों देखतें ही वरमदेव के कटें सिर ने मॅुह फेर लिया, शहजादी ने सिर का अन्तिम संस्‍कार किया और स्‍वयं युमना में कुदकर अपनी जीवन लीला समाप्‍त कर दिया। उक्‍त महाकाव्‍य कान्‍हड़देव प्रबन्‍ध्‍ा में वीर कान्‍हड़देव और दिल्‍ली के बादशाह अल्‍लाउदीन खिलजी के बीच हुए धमासान युद्ध का रोमांचकारी ऐतिहासिेक वर्णन है। गढ़ की पहाड़ी कों सोनगिरी कहनें सें ही चौहान राजाओं की जालोर शाखा सोनगरा कहलाई दुर्ग का निर्माण गुर्जर प्रतिहारों ने करवाया अकबर कें शासन काल में अब्‍दुल-रहीम खानखाना नें इसे गजनी खॉ सें अन्‍तत: ले लिया, तथा बादशाह जहॉगीर के समय किलें की चार दिवारी बनाई गई औरंगजेब की मृत्‍यु कें पश्‍चात यह जोधपुर राज्‍य का स्‍थायी अंग बन गया।

जालोर जिले का भीनमाल नगर प्रचीन काल सें विध्‍या का केन्‍द्र रहा यह 7वीं सदी के पूर्वाद्ध तक गुजरात की राजधानी रहा भीनमाल महाकाव्‍य कें अनुसार प्रारम्‍भ में यह नगर गौताश्रमक कहलाता था, वही स्‍थान बाद में श्रीमाल, पुष्‍पमाल और भीन्‍नमाल या भीनमाल हुआ, प्रभावक चरित एवं प्रबन्‍ध संग्रह के अनुसार श्रीमाल का नाम भिन्‍नमाल नामकरण माघ कवि कों निर्धनावस्‍था में देखकर राजा भोजराज नें किया जों कवि माघ कें अभिन्‍न मित्र थे। इन्‍ही राजा भोज नें भीनमाल में सूर्य मंदिर तथा जालोर में एक संस्‍कृत पाठशाला का निर्माण करवाया।

गुर्जर शासकों के काल मे भीनमाल में ब्रम्‍हगुप्‍त जिन्‍होनें गणित व खगोल विधा में ग्रंथ - ''ब्रम्‍हस्‍फुट सिद्धान्‍त'' की रचना की, उघोतन सुरी नें - कुवलयमाला ग्रंथ की रचना जालोर दुर्ग में की। भगवान श्री राम का रामसीन ग्राम में विश्राम, कृष्‍ण सुभद्रा का भाद्राजून में प्रवास, मनु कें चौथें पुत्र आनर्त द्वारा यहॉ शासन करना, भगवान शिव की तपस्‍थली सुंधा पर्वत प्रसिद्ध रहे। स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व वर्तमान जिला तत्‍कालीन जोधपुर रियासत (मारवाड़) का एक भाग रहा, प्रशासनिक दृष्टि सें यह तीन परगनों या हुकूमतों (जालोर, जसवन्‍तपुरा तथा सांचौर) में विभक्‍त था, राजस्‍थान कें एकीकरण कें समय 30 मार्च 1949 कों जोधपुर रियासत के साथ ही इसका राजस्‍थान राज्‍य में विलय हों गया तथा यह जोधुपर संभाग का हिस्‍सा बना।

भौगोलिक दृष्टि सें जालोर जिला राजस्‍थान राज्‍य के दक्षिण पश्चिम भाग में 24.48'' 5' उत्‍तरी अक्षांश से 25.48'' 37' उत्‍तरी अक्षांश तथा 71.7' पूर्वी देशान्‍तर सें 75.5'' 53' पूर्वी देशान्‍तर के मध्‍य स्थित है, यह जिला राज्‍य का 3.11 प्रतिशत क्षेत्र धेरे हुए 10564.44 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्‍य में जिले का 13वॉ स्‍थान है। इसके उत्‍तर पूर्वी सीमा पाली, उत्‍तर पश्चिम सीमा बाड़मेर, दक्षिण पूर्वी सीमा सिरोही तथा दक्षिण में गुजरात राज्‍य की सीमा लगती है। यहॉ की नवीन कच्‍छारी मिट्टी प्रचीन कच्‍छारी मीट्टी तथा ग्रिड कें रूप में जिले के अधिकांश धरातल पर दृष्टिगोचर होती है।

जालोर जिले की सबसें उॅची पहाड़ी चोटी सुन्‍धा 991 मीटर (3252 फीट) है सम्‍पूर्ण जिला लूनी बेसिन का एक भाग है। इसकी सहायक नदीयों में - जवाई, सुकड़ी, खारी, बाण्‍डी तथा सांगी आदि सभी नदियॉ बरसाती है। शुष्‍क व अर्द्ध शुष्‍क जलवायु वाला जिला जिसकी वार्षिक औसत वर्षा 43.4 से.मी. तथा न्‍यूनतम तापमान 1 डिग्री से.ग्रे. व उच्‍चतम तापमान 45 डिग्री से.ग्रे. तक रहता है।